कलेक्टर श्री ठाकुर ने मेघा को ट्राफी तथा साल-श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया
▪︎लड़कियॉं पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में भी भाग लेना चाहिए - मेघा
तीन साल पहले माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली मध्य प्रदेश की बेटी मेघा परमार ने हाल ही में स्कूबा डाइविंग में विश्व रिकार्ड बनाया है। कलेक्टर श्री चन्द्र मोहन ठाकुर ने मेघा को स्कूबा डाइविंग में विश्व कीर्तिमान बनाने पर बधाई देते हुए उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं दी। श्री ठाकुर ने ट्रॉफी तथा साल-श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया। मेघा सीहोर जिले के एक छोटे गांव भोजनगर की रहने वाली है। मेघा ने सभी बालिकाओं से कहा कि पढ़ाई के साथ-साथ खेलों भी हिस्सा लेना चाहिए। मेघा ने कहा कि असंभ कुछ भी नहीं है। कठिन परिश्रम और मार्गदर्शन की जरूरत होती है। मेघा अब नॉर्थ पोल पर स्काई डाइविंग करना चाहती है।
मध्यप्रदेश की बेटी मेघा परमार ने स्कूबा डाइविंग में रचा इतिहास
मप्र शासन के बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान की ब्रांड एंबेसडर मेघा परमार ने एक बार फिर नया कीर्तिमान स्थापित किया है। सिहोर जिले की रहने वालीं मेघा परमार ने 2019 में माउंट एवरेस्ट फतह किया था, ऐसा करने वालीं मप्र की पहली महिला बनीं थीं। वहीं अब मेघा ने 147 फीट (45 मीटर) की टेक्निकल स्कूबा डाइविंग कर नया विश्व रिकॉर्ड बनाया है। वह विश्व की पहली महिला हैं जिन्होंने माउंट एवरेस्ट को फतह किया है और साथ-साथ टेक्निकल स्कूब डाइविंग में समुद्र के अंदर 45 मीटर की गहराई तक डाइव की है।
मेघा परमार ने ये रिकॉर्ड भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी एवं मप्र के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान जी के “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” अभियान को समर्पित किया है । जबकि मेघा परमार ने स्कूबा डाइविंग कर ये रिकॉर्ड अपने नाम किया है। मेघा परमार विगत डेढ़ वर्ष से स्कूबा डाइविंग की तैयारी कर रहीं थीं। उन्होंने इस दौरान हर दिन 8 घंटे प्रैक्टिस की और कुल 134 बार डाइविंग की।
मेघा परमार ने बताया कि मेरे पास भारत से बाहर जाकर ट्रेनिंग करने का विकल्प था क्योंकि भारत में इसके लिए कोच नहीं मिलते इसलिए अर्जेंटीना से कोच वॉल्टर को भारत बुलाया गया।
मेघा परमार का कहना है कि इस सफलता के पीछे मैं ईश्वर की शक्ति और सभी स्पॉन्सर का धन्यवाद करती हूं जिनके माध्यम से यह संभव हुआ है। उन्होंने बताया कि जब मैंने माउंट एवरेस्ट पर मप्र की बेटी के रूप में तिरंगा झंडा फहराया तो उस वक्त मन में संकल्प लिया था कि एक दिन देश की बेटी बनकर तिरंगा लहराऊं। मेरे मन में था कि पर्वत चढ़ लिया लेकिन अब समुद्र की गहराई में जाकर तिरंगा लहराऊं। मुझे पता चला कि इसके लिए टेक्निकल स्कूबा डाइविंग करनी पड़ेगी जो बहुत कठिन होती है। लेकिन मेरे मन में दृढ़ संकल्प था जिसे में अपनी मेहनत से पूरा करना चाहती थी। पहले मुझे स्वीमिंग तक नहीं आती थी जिसके लिए स्वीमिंग की ट्रैनिंग लेनी पड़ी। फिर उसके बाद लगातार डेढ साल तक हर दिन 8 घंटे ट्रेनिंग की। स्कूबा डाइविंग के सभी कोर्स किए इस दौरान 134 डाइव की। इसमें जान जाने के जोखिम होते हैं। जो ऑक्सीजन धरती पर इंसान के लिए अमृत रहती है वहीं समुद्र में शरीर के अंदर ज्यादा मात्रा में हो जाने पर जान पर बन आती है। जिससे इसांन पैरालिसिस जैसी अन्य गंभीर बीमारी का शिकार हो सकता है। और जान भी जा सकती है। इस खेल में आपको शारीरिक रूप से ज्यादा मानसिक तौर पर ज्यादा मजबूत होना पड़ता है। कई बार डाइव की तैयारी में मेरे पैरों पर 11-11 किलो के सिलेंडर गिरे जिससे गंभीर चोटों का सामना करना पड़ा। मेरे लिए सबसे मुश्किल पूरे सफर में पढ़ाई कर टेक्निकल डाइविंग का एग्जाम पास करना था जिसमें फिजिक्स एवं मैथ्स के जटिल सवालों का अध्ययन करना पड़ता था।
माउंट एवरेस्ट और स्कूबा डाइविंग में क्या कठिन है?
मैं कहती हूं कि दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र के माउंट एवरेस्ट हैं। माउंट एवरेस्ट का दूसरा अर्थ ही मुश्किल और चुनौतीपूर्ण होता है लेकिन आप इस बात से यह अंदाजा लगा सकते हैं कि अभी तक भारत में 80 से कम महिलाओं ने माउंट एवरेस्ट फतह किया है लेकिन मैं इस देश में csxसमुद्र के अंदर 45 मीटर तक टेक्निकल डाइव करने वालीं महिलाओं के नाम तक नहीं मिलते। मेरे लिए दोनों अनुभव चुनौतीपूर्ण तथा एक सुंदर सपने की तरह है जो भगवान की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति को देखने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ।
स्कूबा डाइविंग क्या होता है?
स्कूबा डाइविंग पानी के नीचे डाइविंग करने का एक खास तरीका है। इस डाइविंग के दौरान गोताखोर सेल्फ कोंटेनेड अंडरवॉटर ब्रीथिंग अप्परेटस के उपयोग से पानी के अंदर सांस लेता है। स्कूबा डाइवर्स पानी में अपने साथ ऑक्सीजन के अलावा अन्य जरूरी गैस लेकर जाते हैं, जिससे उन्हें सांस लेने में दिक्कत न आए और वह ज्यादा देर तक पानी में रह सकें।
मेघा ने माउंट एवरेस्ट पर फतह और स्कूबा डाइविंग से जुड़े अनुभव साझा करते हुए बताया कि 147 फीट की टेक्निकल स्कूबा डाइविंग कर नया विश्व रिकॉर्ड बनाने वाली वह विश्व की पहली महिला हैं। मेघा ने बताया कि भारत में स्कूबा डाईविंग कोच नहीं होने के कारण अर्जेंटीना से कोच वॉल्टर को भारत बुलाया गया। उन्होंने बताया कि पहले मुझे स्वीमिंग तक नहीं आती थी । सबसे पहले मुझे स्वीमिंग की ट्रैनिंग लेनी पड़ी। फिर उसके बाद लगातार डेढ साल तक हर दिन 8 घंटे ट्रेनिंग की। स्कूबा डाइविंग के सभी कोर्स किए इस दौरान 134 डाइव की।
स्कूबा डाइविंग में जान जाने का जोखिम बना रहता है। जो ऑक्सीजन धरती पर इंसान के लिए प्राण वायु है, वहीं समुद्र में शरीर के अंदर ज्यादा मात्रा में जाने पर जान के लिए खतरा बन जाती है। जिससे इंसान पैरालिसिस जैसी अन्य गंभीर बीमारी का शिकार हो सकता है और जान भी जा सकती है। इस खेल में शारीरिक रूप से ज्यादा मानसिक तौर पर ज्यादा मजबूत होना पड़ता है। कई बार डाइव की तैयारी में मेरे पैरों पर 11-11 किलो के सिलेंडर गिरे जिससे गंभीर चोटों का सामना करना पड़ा। मेरे लिए सबसे मुश्किल पूरे सफर में पढ़ाई कर टेक्निकल डाइविंग का एग्जाम पास करना था जिसमें फिजिक्स एवं मैथ्स के जटिल सवालों का अध्ययन करना पड़ता था। कलेक्टर से भेट के दौरान जिला खेल अधिकारी श्री अरविन्द इलयाजर भी उपस्थित थे।